यह एक श्वसन रोग की स्थिति है, न्यूमोनिया बच्चों और बूढ़ों में इम्यूनिटी कम होने के कारण जल्दी हो जाता है,
न्यूमोनिया किसी को भी फेफड़े में संक्रमण के कारण हो सकता है यह संक्रमण जब कोई भी सूक्ष्म जीव
एयरवेज (through Airways) यानी नाक के रास्ते तब होता है।
इस रोग में फेफड़ों के अंदरूनी हिस्सों विशेषकर वायुकोषों (Air sacs) में,
जिनमें वायु सदैव एकत्रित रहती है और यह वायु कोष, रक्त कोशिकाओं से कनेक्ट रहते हैं
जिससे ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड का एक्सचेंज रक्त कोशिकाओं से होता रहता है
स्वाभाविक रूप से हमारे दाहिने फेफड़े में तीन पालियाँ (lobes)होती हैं और बाएँ फेफड़े में दो पालियाँ(lobes) होती हैं
उसके बाद कई संकरी वायुमार्ग/ब्रोंकियो होते हैं उसके बाद वायु कोष होते हैं
जिनमें संक्रमण के कारण सूजन आ जाती है और भीतर के कोष्ठकों (विशेषकर वायुकोषों )में द्रव्य इकट्ठा हो जाता है
जिससे फेफड़ों में ऑक्सीजन आसानी से जा नहीं पाता है और कार्बन डाइऑक्साइड आसानी से निकल नहीं पता है
इससे आगे भी यही प्रक्रिया रक्त कोशिकाओं से भी बाधित होती है अतः इस समस्या को निमोनिया कहते हैं।
न्यूमोनिया के प्रकार
समानता न्यूमोनिया को दो भागों में बांटा जा सकता है।
1-लोबर न्यूमोनिया
2-लॉबुलर(Lobular) न्यूमोनिया
लोबर न्यूमोनिया (Lobar Pneumonia)
इसको न्यूमोकोकल (Pneumococcal) एवं प्राइमरी न्यूमोनिया के नाम से भी जानते हैं।
यह फेफड़ों की एक प्रकार की सूजन (शोथ) है, जिससे फेफड़े के एक अथवा अधिक भागों में एक जैसा कठोरता (Consolidation)
न्यूमोकोकाई बैक्टीरिया के संक्रमण से हो जाता है लोबर न्यूमोनिया में संकर्मण किसी भी 1 फेफड़े में होता हैं
लोबर न्यूमोनिया के प्रमुख कारण
- मुख्य कारण स्ट्रेप्टोकोकस न्यूमोनाई (लगभग 90% रोगियों में) होता है।
- इसके अतिरिक्त स्टेफ- पायोजिन्स, स्ट्रेप-पायोजिन्स, क्लेबसिला, न्यूमोनाई
- एवं एच० इंफ्लूएन्जा और अन्य छोटे जीवाणु तथा बहुत-से जीवाणु (जो मनुष्य के गले में रहते हैं, किन्तु वह शरीर को हानि नहीं पहुंचाते हैं)
- शरीर की प्रतिरोधक शक्ति (इम्युनिटी) कम होते ही फेफड़ों में जाकर न्यूमोनिया रोग उत्पन्न कर देते हैं,
- वायरस, हानिकारक गैस, अधिक थकान भी इस रोग को उत्पन्न करते हैं।
- न्यूमोनिया रोग शीत ऋतु के प्रारम्भ में अधिक होता है तथा पुरुष वर्ग में स्त्री वर्ग की अपेक्षा यह रोग अधिक होता है।
- वातावरण में गरमी-सर्दी के परिवर्तन में यह रोग जल्द होता है।
- ऐसे स्वस्थ व्यक्ति, जिनकी शारीरिक प्रतिरोधक शक्ति (किसी अन्य रोग के कारण) पहले से ही कम हो,
उनको भी यह रोग जल्द ही अपनी गिरफ्त में ले लेता है।
- ऑपरेशन के उपरान्त स्राव के फेफड़ों में एकत्र होने से एवं उसमें जीवाणु द्वारा आक्रमण करने से भी यह रोग हो सकता है।
लोबर न्यूमोनिया के प्रमुख लक्षण
- इस रोग का आक्रमण अचानक होता है रोगी को सर्दी लगती है तथा -कभी उल्टी भी हो सकती है
और कुछ ही घण्टों में तापमान बढ़कर 39-40 डिग्री सेण्टीग्रेड तक हो जाता है।
- रोगी की छाती में दर्द होता है (जो खांसी के साथ बढ़ जाता है) रोगी को बार-बार खांसी आने के कारण दर्द निरन्तर बढ़ता चला जाता है,
- किन्तु रोगी को कफ/बलगम बहुत कम मात्रा में निकलता है और चिपचिपा होता है।
- कभी-कभी रक्त के साथ भी कफ निकलता है।
- रोगी को थकान, सिरदर्द, सम्पूर्ण शरीर में दर्द व भूख नहीं लगती है एवं रोगी को शरीर में टूटन अनुभव होती है।
- रोगी की सांस तेज हो जाती है और त्वचा लाल व शुष्क (ड्राई) लगती है।
- बच्चों में खांसी के कारण उल्टी हो सकती है।
- रोगी की पसलियां भीतर की ओर घुसी हुई प्रतीत होती हैं।
- धीरे-धीरे रोगी का ज्वर कम होकर रोग स्वतः ही आराम होना आरम्भ हो जाता है,
- परन्तु खांसी अधिक हो जाती है रोगी को इस अवस्था में पीला-हरा बलगम निकलता है।
- कठोरता (CONSOLIDATION) के कारण रोगी की उस ओर की छाती में जो परिवर्तन होते हैं,
- वे जांच द्वारा पता लगते हैं, यथा- रोगी की सांस के साथ छाती हिलने की गति कम हो जाती है।
- श्वास की आवाज बढ़ जाती है आघातन ध्वनि प्रभावित भाग पर कम होती है’ स्वर सम्बन्धी प्रतिध्वनि (Vocal Resonance) अधिक हो जाती है।
- यदि रोगी को धीरे-धीरे बोलने हेतु निर्देशित किया जाये और छाती पर स्टेथोस्कोप रखकर सुनें, तो आवाज तेज सुनाई देती है।
- आरम्भ में कड़-कड़ की आवाज साफ और धीरे-धीरे, किन्तु बाद में यही कड़-कड़ तेज हो जाती है ।(Crept Present)
जांच (Investigations)
-रक्त परीक्षा (Blood Test) –
TLC, DLC, ESR
–बलगम (Sputum-Microscopy) –
अधिकांश रोगियों में कफ की सूक्ष्मदर्शी यन्त्र (माइक्रोस्कोप) से जांच करने पर स्ट्रेप० न्यूमोनाई मिलता है।
–स्पुटम कल्चर (Sputum Culture) –
जीवाणु की पहचान करके रोग की उसी प्रकार चिकित्सा करें।
–ब्लड कल्चर (Blood Culture) –
जीवाणु उपस्थिति धनात्मक (+), यानी पॉजिटिव Positive
–छाती का एक्स-रे (X-Ray Chest) –
आक्रान्त/प्रभावित भाग में एक जैसी धुंधली तस्वीर दिखाई पड़ती है।
–ब्रोंकोस्कोपी (Broncoscopy)
कॉम्पलीकेशन्स -Complications)
श्वसन तन्त्र सम्बन्धी पल्मोनरी (Pulmonary) – प्लूराइटिस (Pleuritis), प्लूरल इफ्यूजन (Pleural Effusion)
ब्रॉकियेक्टेसिस (Bronchiectasis) श्वास नलिका विस्फार, एम्पाइमा (Empyema) प्लूरल कैविटी में मवाद(पस)
हृदय (CVS) – तीव्र पैरीकार्डीटिस (Acute Pericarditis), तीव्र सर्क्युलेटरी फेल्योर (Acute Circulatory Failure)
तन्त्रिका तन्त्र सम्बन्धी न्यूरोलॉजिकल( Neurological) – मेनीनगिज्म (Meningism)
मेण्टल कंफ्यूजन (Mental Confusion) दिमागी असन्तुलन । भावीफल (Prognosis)
रोगी की तुरन्त ही समुचित चिकित्सा आरम्भ करने से रोगी एक सप्ताह में पूर्णरूपेण ठीक हो जाता है।
आजकल नयी-नयी सफल ओषधियां बाजार में उपलब्ध हैं, जिनको आवश्यकतानुसार समुचित मात्रा में देने पर कोई भी उपद्रवं उत्पन्न नहीं होता है
तथा रोगी को पूर्णरूपेण स्वस्थ किया जा सकता है
किन्तु असावधानी एवं गलत ओषधियों का चयन/प्रयोग रोगी को मृत्यु के मुख की ओर धकेल सकता है।
लोब्यूलर न्यूमोनिया
इसको श्वसनी शोथ, फुफ्फुस शोथ और ब्रोंको न्यूमोनिया (Broncho Pneumonia) के नाम से भी जाना जाता है।
इस रोग में फेफड़ों की प्राथमिक इकाई लोब्यूल में जगह-जगह पर संक्रमण (इंफेक्शन) से होने वाले न्यूमोनिया को ब्रोंको न्यूमोनिया
अथवा लोब्यूलर न्यूमोनिया कहते हैं।
इस प्रकार की न्यूमोनिया में फेफड़ों के साथ-साथ श्वास नलिकाओं (Bronchioles) में भी संक्रमण हो जाने से
फेफड़ों में स्थान-स्थान पर छोटे-छोटे घाव हो जाते हैं। लोब्यूलर न्यूमोनिया दोनों फेफड़ो में हो सकता हैं
(यह प्राय: बच्चों तथा बुर्जुगों में होता है) बच्चों में खसरा (मीजिल्स) व काली खांसी (हूपिंग कफ) के बाद
और बूढ़े लोगों में जीर्ण ब्रोंकाइटिस, तीव्र ब्रोंकाइटिस अथवा इंफ्लूएन्जा के बाद में होता हैं।
अन्त वाली श्वास नलिकाओं में मवाद युक्त स्राव एकत्रित होने से वायुकोष्ठ सिकुड़कर एकत्र होकर कठोर/ठोस हो जाते हैं।
यह रोग बिना चिकित्सा के स्वत: ही ठीक नहीं होता है और आगे चलकर ‘पल्मोनरी फाइब्रोसिस’ (Pulmonary Fibrosis) में परिवर्तित हो जाता है।
लोब्यूलर न्यूमोनिया के प्रमुख कारण
- न्यूमोकोकाई, स्टेफिलोकोकाई, स्ट्रेप्टोकोकाई एवं एच० इंफ्लूएन्जी इस रोग में सर्वाधिक पाये जाने वाले बैक्टीरिया हैं
- यह रोग, जीवाणु, वायरस, फंगस, कृमि, जहरीली गैसों, रासायनिक अथवा भौतिक आघात, किसी से भी हो सकता है।
- बच्चों में खसरा और काली खांसी के बाद तथा बूढ़ों में वायु प्रणाली शोथ (ब्रोंकाइटिस) के बाद यह रोग (जब रोगी की प्रतिरोधक क्षमता/शक्ति (इम्युनिटी) कमजोर या कम हो जाती है।
लोब्यूलर न्यूमोनिया के लक्षण
- सबसे पहले रोगी को खांसी का कष्ट होता है खांसी अधिक होने से रोगी की छाती में पीड़ा होने लग जाती है
और थोड़ा बलगम भी निकलने लगता है।
- रोग के प्रारम्भ में रोगी को ज्वर हल्का-हल्का होने के साथ ही कभी ज्वर उतरता है, तो कभी ज्वर चढ़ता है।
- बच्चों में यह ज्वर 103 डिग्री फेरनहाइट से 104°F (डिग्री फेरनहाइट) तक हो सकता है।
- संक्रमण तीव्र होने की स्थिति में रोगी को तेज/अधिक ज्वर बना रहता है।
- रोग के आरम्भ में रोगी को कफ/बलगम नहीं के बराबर आता है, परन्तु 2-3 दिन के बाद झागयुक्त चिपचिपा थोड़ा-थोड़ा बलगम निकलता है।
- संक्रमण के होने से यह (बलगम) पीले से हरे रंग का हो जाता है। बलगम के निकलने से खांसी कुछ कम हो जाती है।
- इस रोग से पीड़ित रोगी बेचैन और सुस्त रहता है, उसका खाना-पीना कमहो जाता है और उसका किसी भी कार्य में मन नहीं लगता है।
- धीरे-धीरे रोग (स्वत: ही) ठीक होना आरम्भ हो जाता है, किन्तु रोगी के पूर्ण विश्राम तथा खान- पान की ओर ध्यान रखा जाना आवश्यक है।
# – आजकल रोग के आरम्भ में ही मुख्य ओषधियों में उचित एण्टीबॉयोटिक ओषधियां
# – तथा साथ में लक्षणानुसार अन्य सहायक ओषधियों का प्रयोग रोगी को कराया जाता है,
जिससे रोग अधिक न बढ़े)
- बच्चों में खांसी की अधिकता के कारण उल्टी आती है और छाती में दर्द भी होता है।
- इसी कारण वह निढाल होकर खाना-पीना भी छोड़ देते हैं, जिससे वह कमजोर हो जाते हैं। यह रोग लोबर न्यूमोनिया से कम खतरनाक होता है।
- रोगी की छाती की जांच करने पर हल्की-हल्की सीटी की आवाज सुनायी देती है तथा छाती में से घरघराहट की आवाज भी आ सकती है।
- इस रोग के साथ- साथ खसरा, काली खांसी, दमा, तीव्र ब्रोंकाइटिस, दीर्घकालीन ब्रोंकाइटिस के लक्षण भी
- रोगी में देखने को मिल सकते हैं।विशेष-ब्रोंको न्यूमोनिया से पीड़ित रोगी में लक्षण और चिह्न ब्रोंकाइटिस रोग सदृश होते हैं
- परन्तु रोगी की दशा/हालत अधिक गम्भीर होती है।
उपद्रव- ब्रोंकिएक्टेसिस (श्वास नलियों का फैलाव), एम्पाइमा ।
न्यूमोनिया में जोखिम भरी स्थिति
वैसे तो न्यूमोनिया का पूर्ण रूप से इलाज संभव है लेकिन न्यूमोनिया कुछ कंडीशन में कुछ पेशंटों के लिए जोखिम भरा हो जाता है
और लाइफ थ्रेटनिंग हो जाती है।
जो निम्नलिखित हैं।
१-कम प्रतिरक्षा ( low immunity) वाला व्यक्ति
60 या 65 साल से अधिक उम्र का व्यक्ति ,अक्सर 60 साल से ऊपर के व्यक्ति को वृद्ध व्यक्ति माना जाता है और उनकी इम्यूनिटी कमजोर होती है
और 2 साल से कम उम्र के बच्चे अथवा नवजात शिशु अक्सर इन बच्चों का भी रोग से लड़ने की क्षमता कमजोर होती है और न्यूमोनिया
ज्यादा परेशान कर सकता है।
२-लंबे टाइम से बीमार चल रहा है व्यक्ति
३-क्रिटिकल बीमारी से जूझ रहा व्यक्ति जैसे -हाई शुगर, हाई बीपी, कैंसर, थायराइड,इत्यादि।
४-गर्भवती महिला
५-ज्यादा धूम्रपान (smoke) करने वाला आदमी
६-जिसको ज्यादा एलर्जी होता हो
७-अनुवांसिक रूप से पल्मरी(pulmary) दिक्कत हो यानि फेफड़े से सम्बन्धित आदि
न्यूमोनिया एक आदमी से दूसरे आदमी में कैसे फैलता है
सामान्यतः जब न्यूमोनिया से इनफेक्टेड व्यक्ति ख़ासता अथवा छिकता है तो उसके मुख अथवा नाक के द्वारा
हल्की (छोटे-छोटे ड्रॉप में) इनफेक्टेड म्यूकस या वाटर निकलता है
और पास में मौजूद व्यक्ति के नाक व मुख के रास्ते उसके फेफड़ों तक जाता है और इनफेक्टेड कर देता है।
अथवा जब न्यूमोनिया से इनफेक्टेड व्यक्ति अपने नाक और मुख को टच करता है और वह टच किया हुआ हाथ किसी वस्तु पर टच करता है
और उस वस्तु को कोई दूसरा व्यक्ति टच करके अपने नाक और मुंह तक लगा लेता है तो भी वह इनफेक्टेड हो जाता है।
इलाज हेतु आवश्यक जांचें (Investigations)
यदि संख्या में टोटल ल्यूकोसाइट (TLC) वृद्धि मिले, तो यह जीवाणु संक्रमण का संकेत है और यदि TLC संख्या में कम हों,
तो यह वायरल संक्रमण का परिचायक है।
ईओसिनोफिल्स यदि संख्या में अधिक हों, तो लोफलर्स (Loeffler’s) सिण्ड्रोम हो सकता है।
बलगम की जांच (Sputum Test) – सूक्ष्मदर्शी यन्त्र (माइक्रोस्कोप) में देखने से रोग उत्पन्न कारक जीवाणु का पता लगता है।
छाती का एक्स-रे टेस्ट – इसमें छोटे-छोटे धब्बे से (जिनकी परिधि अनियमित हो) दोनों फेफड़ों में देखने को मिलते हैं।
फेफड़ों में नीचे की और यह धब्बे अधिक बड़े और घने हो सकते हैं।
चिकित्सा
- रोगी को भली प्रकार समझा दें कि वह अपना सर्दी तथा अन्य रोग उत्पन्न कारकों से बचाव करे तथा चिन्तारहित होकर चिकित्सा कराये घबराये नहीं।
- यदि रोगी को सांस लेने में दिक्कत हो, तो ऑक्सीजन दें।
- रोगी को पर्याप्त मात्रा में शुद्ध जल दें, उसके मुख आदि की खूब भली प्रकार सफाई का ध्यान रखें एवं रोगी की प्रत्येक दिन स्पंजिंग करें
- तथा उसके बिस्तर के कपड़े बदलें तथा पहनने के कपड़े साफ-स्वच्छ प्रतिदिन पहनायें और उसके रहने के स्थान (कमरा) को खूब साफ-स्वच्छ रखें।
- मरीज को खांसी को कम करने के लिए भाप लेना चाहिए और बलगम को थूक देना चाहिए ।
न्यूमोनिया में क्या खाएं
✓ गर्म चाय, गर्म दूध और कॉफी पिएं।
✓ आहार में तरल चीजें, जैसे-चावल की पतली लपसी, साबूदाना की खीर, बालीं, शोरबा,अरारोट, मूंग, मसूर की दाल का सूप आदि सेवन करें।
✓ लेमनेड या सादा पानी गर्म कर भरपूर मात्रा में पिएं।
✓ एक लहसुन की कली पीसकर 2 चम्मच गर्म पानी के साथ सुबह-शाम खाएं।
✓ प्यास लगने पर गर्म पानी में एक चम्मच शहद घोल कर पिलाते रहें।
न्यूमोनिया में क्या न खाएं
✓ भारी, गरिष्ठ, तला, मिर्च-मसालेदार ठोस भोजन का सेवन न करें।
✓ ठंडा, बरफ का पानी, आइसक्रीम, ठंडे पेय न लें।
✓ शराब, तंबाकू जैसे उत्तेजक पदार्थ न खाएं।
✓ जूठे बर्तनों में रखी या बासी खाने-पीने की चीजें सेवन न करें।
न्यूमोनिया में सहायक उपाय
न्यूमोनिया में क्या करें
✓ रोगी को सम तापमान वाले कमरे में रखें जहां शुद्ध वायु का आवागमन भी हो।
✓ सर्दी न लगे, इसके लिए कपड़े पहनाएं और पांवों को गर्म रखें।
✓ रोगी को पूरा आराम करने दें। उससे ज्यादा बातचीत न करने को कहें।
✓ छाती व पीठ पर सरसों के तेल की मालिश कर फलालैन का कपड़ा लपेट दें। अधिक पीड़ा होने पर सफेद तेल (लिनिमेंट टर्पेटाइन) की मालिश कर सिकाई करें।
क्या न करें
✓दरवाजे, खिड़कियां बंद करके न सोएं।
✓अधिक चलने-फिरने तथा शारीरिक परिश्रम से बचें।
✓बच्चों और कमजोर बुजुर्गों रोगी के कमरे में किसी को अधिक आने-जाने न दें।
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