आम तौर पर शरीर के बाएं या दाएं भाग की मांसपेशियों व नसों की कार्यशक्ति, गतिशीलता, कम या समाप्त हों जाती हैं, तो उस रोग को पक्षाघात या लकवा – Paralysis अथवा फालिस, हवा का मारना, फालीस मारना आदि नाम से जाना जाता है।
यह मुख्य रूप से संपूर्ण शरीर का, आधे शरीर या सिर्फ चेहरे का लकवा होता हैं।
आयुर्वेद के अनुसार पशाघात का मुख्य कारण शरीर में वात दोष का प्राकुपित हों जाने से होता हैं।
जिस भी अंग में फालिश मारता हैं वह अंग पूरा अथवा आंशिक रूप से काम करना बंद कर देता हैं।
जैसे – यदि लकवा बाए साइड मे हैं तो शरीर का बाया साइड यानी हाथ, पैर और धड़ बिल्कुल हिलेगा नहीं, उठेगा नही, या थोडा थोडा उठेगा या हिलेगा, यदि मुख मे फालीश है। तो मुख टेढ़ा हो सकता हैं जबान तुतलाने लगेगी मरीज सही से बोल नहीं सकता आदी।
लकवा/पक्षाघात-Paralysis के कारण
लकवा या फालिश के मुख्य कारण ब्रेन में ब्लड का सप्लाई रुक जाना या बाधित होना होता हैं।
ब्रेन में खून की सप्लाई ना पहुंचने के 2 कारण होते हैं।
1- ब्रेन स्ट्रोक
ये अक्सर चोट लगने से दिमाग अथवा रीड की हड्डी की नसों (जो दिमाग तक जाती है) के फट जाने से होता हैं। ऐसा हो जाने से दिमाग तक खून और ऑक्सीजन पहुंच नहीं पाता है जिससे आदमी का माइंड उस पार्टिकुलर पार्ट को मैसेज नही दे पाता है अतः वह पार्ट (हाथ, पैर, मुख आदी) काम करना बंद कर देता हैं।
2- थ्रोंबोसिस (thrombosis)
थ्रोंबोसिस में नसों में ब्लड के थक्के बन जाते हैं , जिसे ब्लड क्लॉट्स (clots) भी कहते हैं, इस अवस्था मे भी माइंड की नसों की सप्लाई बंद हो जाती है
ये सिचुएशन भी माइनर चोट के कारण या ब्लड गाढ़ा होने के कारण अथवा नसों में सिकुड़न , कोलेस्ट्रॉल एव ट्राइग्लिसराइड के बढ़ जाने व प्लेटलेट्स में दिक्कत आने के कारण भी हो सकता हैं।
थ्रोंबोसिस का कोई फिक्स कारण नही हैं। थ्रोंबोसिस के कारण से जब ब्लड सप्लाई बाधित होंगी तब भी पैरालिसिस हो सकता हैं।
लकवा/पक्षाघात- Paralysis के अन्य कारण
3- जन्म जात
कुछ लोगो मे ये दिक्कत जन्म से हो जाती हैं उनका विकास मां के गर्भ में ही सही से नही हो पाता है खास करके ब्रेन व स्पाइन की तब भी ओ लकवा के मरीज होते हैं।
4- अनुवांशिक
पैरालिसिस की दिक्कत अनुवांसिक भी होती हैं जो जन्म से (by birth) अथवा कुछ उम्र निकल जाने के बाद भी हो जाता है।
5- विटामिन B12 की कमी
शरीर मे किसी भी विटामिन की कमी से मांसपेशियां, नसें, एव हड्डियां कमजोर होती है इस लिए इसे ज्यादा दिन इग्नोर नहीं करना चाहिए।
खास करके B 12 की कमी से भी फलीश की दिक्कत हो सकती हैं।
6- पोलियो
पोलियो को सब लोग जानते है जो जन्म जात होता हैं ये भी पैरालिसिस का ही पार्ट है।
7- रीड की हड्डी के कई अन्य दिक्कतों के कारण भी फालिश हो सकता हैं
जैसे – शरीर के अधिक वजन के कारण अथवा वजन के काफी कम (कमजोरी) होने के कारण रीड की हड्डी (back bone) टेढ़ा हो सकता हैं अथवा झुक सकता हैं
इससे कोई भी नस दब सकती है, जिससे ऑपरेशन की कंडिशन हो सकती है रीड की हड्डी (back bone) में कोई गांठ (tumor) हो जाने के कारण भी पैरालाइसिस हो सकता है इस गांठ की वजह से भी सर्जरी की सम्भावना होती हैं।
लकवा/पक्षाघात-Paralysis के लक्षण
लकवा/पक्षाघात-Paralysis के लक्षण को सब लोग जानते हैं इसमें मरीज का वह अंग काम नही करता है जिस अंग में पैरालिसिस है।
यदि आदमी के चेहरे पर फालिश हैं तो चेहरा टेढ़ा दिखाई देगा खास करके होठ, मरीज सही से बोल नही पाता हैं आवाज नही निकलती है ,खाना सही से खा नहीं पाएगा इत्यादि।
यदि पैरालिसिस हाथ, पैर या बाकी के हिस्सों में हैं तो वह अंग उठेगा, हिलेगा नहीं बिल्कुल लूज अथवा कड़ा व टेढ़ा हो जायेगा।
आदमी चल नही सकता, हील नहीं सकता, कोई काम नहीं कर सकता इत्यादि।
लकवा/पक्षाघात-Paralysis के प्रकार
1- मोनोप्लेजिया
मोनो मतलब होता है 1 यानी जब शरीर के किसी 1अंग में पैरालिसिस होता हैं तो उसे मोनोप्लेजिया पैरालिसिस कहते हैं इसमे कोई 1 हाथ, पैर, या अन्य कोई 1 ही अंग हो सकता है।
2- हेमिप्लेजिया
जब शरीर के किसी एक हिस्से यानी पूरा बायां पार्ट अथवा दाया पार्ट में फलिश होता हैं तो हम उसे हेमिप्लेजिया कहते हैं इसमें पूरा हिस्सा काम नहीं करता हैं जिस हिस्से में पैरालाइसिस होता हैं।
3- पैराप्लेजिया –
पैराप्लेजिया में कमर के नीचे का हिस्सा में जो फालिश होता है
उसे इस कैटेगरी में सामिल करते हैं। इसमें हो सकता हैं दोनो पैर या उससे ऊपर नितंब यानि कमर के नीचे का ही हिस्सा काम नहीं करेगा।
4- क्वॉड्रिप्लेजिया –
क्वॉड्रिप्लेजिया को टेट्राप्लेजिया भी कहते हैं इसमें गर्दन के नीचे पूरा शरीर में फालिश होता हैं यानी दोनो हाथ, दोनो पैर, और धड़ भी ।
पैरालायसिस ना हो इसके लिए क्या करे?
हेल्दी लाइफ स्टाइल –
आजीवन आदमी को हेल्दी लाइफ स्टाइल रखना चाहिए इससे बल्कि पैरालाइसिस से ही केवल बचाव नहीं होता हैं इससे अन्य रोगों से भी बचा जा सकता हैं।
हेल्दी लाइफ स्टाइल में बैलेंस्ड डाइट, रेगुलर एक्सरसाइज, तनाव का ना होना, इत्यादि का ध्यान रखना होता हैं
मेटाबोलिक सिंड्रोम नहीं होना चाहिए
- मेटाबोलिक सिंड्रोम का मतलब कई बीमारियों का समूह होता हैं, खास करके- ब्लड प्रेशर, शुगर, हर्ट रोग, मोटापा, कमजोरी आदि होता हैं।
- इससे बचना पड़ता हैं। ये सब भी अच्छे खान – पान, व्यायाम, स्ट्रेस लेवल कम, कोई दिक्कत हो तो तुरंत उसपर ध्यान हो आदि पर ही निर्भर होता हैं।
चोट लगने से बचना होगा –
पैरालाइसिस से बचाव के लिए आदमी को हमेशा गंभीर चोट से बचाव करना ही पड़ेगा क्योंकि चोट ही लकवा मारने का मेन कारण होता हैं ।
उपरोक्त सुझाव से काफी हद तक बचाव की संभावना हो सकती है लेकिन स्योर्टि नहीं होती है।
क्यों कि पैरालसिस के कई सारे कारण होते है, बढ़ती उम्र के साथ अक्सर कोई ना कोई दिक्कत हो ही जाती है जिससे पैरालासिस हो जाता
लकवा/पक्षाघात-Paralysis – मारने के तुरंत बाद क्या करना चाहिए?
लकवा मारने के बाद जीतना जल्दी हो सके पैरालाइसिस हॉस्पिटल (जहा ट्रामा सेन्टर हो) पहुंचना चाहिए।
यदि लकवा मारने के 4 घण्टे के पहले उचित हॉस्पिटल में भर्ती हो जाए तो लकवा ठीक होने के पूर्ण रूप से संभावना रहती हैं।
क्यों कि वहा डाक्टर द्वारा थ्रंबोलाइसिस इंजेक्शन मरीज को लगा दिया जाता है जिससे आर्टरी के जमे हुए ब्लड घुल जाते है।
इसके साथ साथ मरीज के कंडिशन के अनुसार कुछ और दवाओं का प्रयोग किया जाता है।
अतः रिकवरी के चांसेज ज्यादा हो जाते हैं।
लकवा/पक्षाघात-Paralysis – के मरीज कितने दिनों में ठीक हो जाता है?
पैरालाइसिस एव लकवा का मरीज यदि समय से इलाज शुरू हो जाय तो 2 -3 दिन में आराम मिलने लगता हैं।
मरीज 6 महीने में पूर्ण रूप से ठीक हो जाता है इसके बाद भी मरीज को कोई दिक्कत शेष रह जाती हैं तो उसकी रिकवरी का डेट 18 महीने तक का होते हैं।
उसके बाद भी कोई दिक्कत रह जाती हैं तो ओ लाइफ टाईम के लिए रह जाती हैं।
यह लेख केवल जानकारी के लिए लिखा गया हैं जबकि यह वेबसाइट klyhealth.in किसी भी इलाज की कोई surty नहीं देता। लकवा का कोई भी लक्षण दिखने पर कुशल चिकित्सक से संपर्क करें।
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