इस मलेरिया (बुखार) को मौसमी बुखार, शीत ज्वर, जाड़े का ज्वर और जूडी ताप आदि नामो से जाना जाता है
क्यों की यह मलेरिया बुखार बरसात और ठंढ के टाइम में ज्यादा होता है, वैसे यह बुखार भारत में हमेशा पाया जाता हैं
मलेरिया बुखार अफ्रीका एवं एशियाई देशो में ज्यादा पाया जाता है
यह पूर्ण रूप से मादा एनाफिलीज मच्छर के काटने से होता है, ये मच्छर बरसात के समय में अधिकतर पैदा होते हैं
इससे पीड़ित रोगी को सर्दी के साथ बहुत तेज बुखार चढ़ता है और कुछ समय के उपरांत पसीना आकर यह तापमान (बुखार) उतर जाता है
मलेरिया बुखार (ज्वर) का एक निश्चित चक्र बधा होता हैं जिसमें बुखार 48 घण्टे से 72 घण्टे की अवधि के अन्तराल से आता हैं
इस रोग में बुखार के अलावा कई अन्य दिक्कते होती हैं जो इसी पोस्ट में बताया गया हैं
मलेरिया के कारण
मलेरिया (बुखार) प्लाज्मोडियम नामक जीवाणु के मनुष्य के खून में पहुचने से उत्पन्न होने वाला रोग है
यह जीवाणु मादा एनाफिलीज मच्छर के काटने (Bite) से व्यक्ति के खून तक पहुचता है
प्लाज्मोडियम जीवाणु की 4 जातियां होती हैं
प्लाज्मोडियम वाईवैक्स, प्लाज्मोडियम मलेरी ,प्लाज्मोडियम ओवेल और प्लाज्मोडियम फेल्सीपेरम , मलेरिया रोग पैदा करती है
- प्लाज्मोडियम वाईवेक्स और प्लाज्मोडियम ओवेल तृतीयक (tetial) ज्वर तथा प्लाज्मोडियम मलेरी चतुर्थक ज्वर होता है I
- अपने देश भारतवर्ष में प्रोटोजोआ का मुख्य वाहक मादा एनाफिलीज स्टेफेसी नामक मच्छर है I
- प्लाज्मोडियम फैल्सी पेरम से कुछ अधिक समय तक रहने वाला ज्वर होता है ,जो ‘उपतृतीयक’ (subtertion) ज्वर कहलाता हैI
- सामान्यतया प्लाज्मोडियम वाइवैक्स जीवाणु सुदम्य तृतीयक,प्लाज्मोडियम मलेरी चतुर्थक,प्लाज्मोडियम फैल्सीपेरम दुर्द्म्य तृतीयक ज्वर उत्पन् होती हैI
मलेरिया रोग के सामान्य लछण
- संक्रमित मच्छर के काटने तथा ज्वर चढने के बीच में 7 से 10 दिनों तक का अंतर रहता है I
- इस अवधि में रोगी को भूख नहीं लगाती है, सिरदर्द बना रहता है तथा शरीर में थकान बनी रहती है
- ठंड (शीत) की अवस्था में शरीर की कंपकंपाहट के कारण रोगी को बहुत शीत लगने के कारण ठिठुरन उत्पन्न हो जाती है
- तदुपरांत रोगी को उल्टी होने लगती है और सिर दर्द बना रहता है तथा इसके उपरांत रोगी को ज्वर (104 डिग्री फेरनहाइट से 107 डिग्री फेनहाइट तक) चढ़ना आरम्भ हो जाता है ,
- जिसके कारण रोगी को शरीर में दाह (जलन) के साथ अत्यधिक गर्मी अनुभव होती है रोगी की त्वचा सुखी और जलती हुई सी अनुभव होती है I
- ज्वर की एक निश्चित समयबद्धता (12, 24, 48 अथवा 72घण्टे) हो सकती है इकतरा ज्वर एक दिन छोडकर तृतीयक (तिजारी ) ज्वर प्रत्येक तीसरे दिन , चतुर्थक (चोथैया) ज्वर चौथे दिन तथा कभी –कभी प्रत्येक सप्ताह में 1 दिन आता है I
मलेरिया का जीवाणु अपना जीवनचक्र तीन स्थानों में पूरा करता है
-मनुष्य में अमैथुनी चक्र (Asexual Cycles)
-मादा एनाफिलीज मच्छर में मैथुनी च्रक (Sexual Cycles) I
-मनुष्य के यकित (लीवर Liver ) में I
अमैथुनि च्रक को पूर्ण करने में जीवाणु अगल -अलग समय लेते है –
- प्लाज्मोडियम वाईवैक्स और प्लाज्मोडियम ओवेल नामक जीवाणु -48 घंटे I
- प्लाज्मोडियम फैल्सी पेरम -36 से 48 घंटे I
- प्लाज्मोडियम मलेरी -2 घंटे का समय लेते हैI
(यही करण है की ‘तृतीयक ज्वर ‘एक दिन छोडकर चतुर्थिक ज्वर दो दिन छोडकर और सतत ज्वर प्रतिदिन आता है)
मलेरिया (ज्वर )के प्रकार
1-फैल्सीपेरम मलेरिया (Falciparum Malaria)
इस प्रकार की मलेरिया सर्वाधिक गंभीर और खतरनाक होता है इससे पीड़ित रोगी के लक्षण तीव्र होते है तथा कभी –कभी रोगी की मृत्यु भी हो जाती है I
2 – सेरेब्रल मलेरिया (cerebral Malaria)
यह प्लाज्मोडियम फैल्सीपेरम नामक जीवाणु द्वारा होता है इसे ‘ मस्तिष्क का मलेरिया ‘ भी कहा जाता है
जिसमे रोगी को बेहोशी हो जाती है और बहुत तेज बुखार चढ़ाता है ( बुखार का तापमान 107०F से भी ऊपर हो जाता है )
अथवा आक्षेप / दौरे आने लग जाते है या रोगी को पक्षाघात (पैरालासिस )-Paralysis हो जाता है
तथा कभी –कभी रोगी की मृत्यु भी हो जाती है इसमे रोगी को तेज सिरदर्द होता है जिसके कारण वहआखे खोलने में भी पीड़ा का अनुभव करता है
3 –वाईवैक्स मलेरिया (Vivax Malaria)
प्लाज्मोडियम वाईवैक्स द्वारा उत्पन्न मलेरिया का यह सवार्धिक मिलने वाला (जिसमे तीसरे दिन ज्वर आता है और जो अक्सर रहता है ) रूप है I
इसमे आरम्भ में सिरदर्द , कमरदर्द , भूख न लगना , हाथ –पैर टूटना आदि लक्षण होते है ,
उसके बाद तेज ज्वर चढ़ता है और तीनो अवस्थाए (कंपकंपी /ठण्ड ,तेज ज्वर व पसीना छुटना ) होती है यह ज्वर रोगी को प्राय:दिन के समय में होता है I
4 -लेटेन्ट मलेरिया (Latent Malaria)
यह मलेरिया रोग जिसमे परजीवी रोगी के रक्त में विधमान रहते है ,परन्तु जीवाणु रक्त में विधमान रहते हुए भी कोई लक्षण प्रदर्शित नहीं करते है
इस प्रकार का मलेरिया रोगी, रोग का प्रसार करने में सहायता करता है I
5 -ओवेल मलेरिया(Ovale malaria )
यह एक मृदु प्रकार का मलेरिया रोग है , जिसमे पीड़ित रोगी को तृतीयक ज्वर जो बार –बार आक्रमण करता है और जो स्वंय ही समाप्त होने वाला बुखार है I
6 -मलेरियाई मलेरिया(Malariae Malaria ) /क्याटर्न मलेरिया (Quartan Malaria)
प्लाज्मोडियम मलेरी द्वारा उत्पन्न रोग है,
जिसमे ज्वर प्रतेक 72 घंटे में ,अर्थात चौथे दिन आता है I यह वृक्को पर विनाशकारी प्रभाव करता है , जिसमे नेफ्रोसिस हो जाती है और सूजन आ जाती है रोगी के मूत्र में प्रोटीन जाने लगता है
और रक्त में प्रोटीन की कमी के कारण सूजन आ जाती है इसमे लक्षण इतने तीव्र नही होते है I
7. टर्शियन मलेरिया (Tertian Malaria)
यह मलेरिया ज्वर तीसरे दिन आता है और प्रवेग ‘जाड़ा’ ‘बुखर ‘और ‘पसीना ‘ आना -इन अवस्थाओ में विभाजित रहता है यह तृतीयक /तिजारी मलेरिया कहलाता है I
8. क्योटीडियन मलेरिया (Quotidian Malaria)
प्लाज्मोडियम वाईवैक्स द्वारा उत्पन्न मलेरिया ,जिसमे प्रतिदिन ज्वर हो जाता है और ज्वर एकदम से बढ़ जाता है और निचे गिर जाता है
इसे दैनिक मलेरिया कहते है I
मलेरिया रोगी की पहचान
ठीक समय पर कंपकंपी लगने के साथ ही ज्वर चढना और पसीना आकर ज्वर उतर जाना तथा साथ ही प्लीहा वृद्धि व रत्ताल्प्ता होती हैं
रक्त की परिक्षण
मलेरिया के लिए माइक्रोस्कोपी या रैपिड डायग्नोस्टिक टेस्ट (आरडीटी)- RDT खून के नमूने (blood sample) से होता है।
रोगी के रक्त्त की जाँच कपकंपी के ठीक बाद करनी चाहिए मलेरिया पैरासाइट कभी- कभी रक्त जाँच में नही मिलता है I
रोग का परिणाम
- तेज ज्वर के कारण रोगी को दौरे आना एवं कोमा (coma) में चले जाना ,
- रक्ताल्पता ,पेचिश ,कालमेह ,न्यूमोनिया ,क्षयरोग ,ब्रोंकाइटीस ,शरीर में जल की कमी (डीहाईड्रेशन ), यकृति शोथ ,पित्ताशामरी ,वृक्क शोथ ,मानसिक विकार एवं नापुसकता आदि रोग उपद्रव स्वरूप उत्पन्न हो सकते है
- इस ज्वर में प्लीहा /तिल्ली और यकृत बढ़ जाते है तथा समुचित चिकित्सा के आभाव में पांडू रोग ( Jaundice ) और पेचिश हो जाता हैI
मलेरिया में सहायक उपाय
रोगी को विस्तर पर पूर्ण रूप से आराम कराये I
बुखार के टेम्प्रचेर को कम करने के लिए पैरासिटामोल अथवा एस्प्रिन दवाओ का उचित मात्रा में उपयोग कराये I
दवाओ के प्रयोग में देरी ना करे I
ठंड व कंपकंपी को कम करने के लिए कंबल, रजाई ,गद्दे व गर्म पानी का प्रयोग करे I
द्रव की कमी में ग्लूकोज /लवण जल (नार्मल सैलाइन) शिरामार्ग (I/V) से दे I
मलेरिया में प्रथम अवस्था में कंपकंपी होता है और दूसरी अवस्था में जलन /दाह के साथ बुखार तेज होता है जलन दाह की अवस्था में ठंढे पानी से शरीर को पोछना चाहिए और बुखार के ताप को कम करने के लिए एंटीपायरिटिक दवाओ का लेना चाहिए I
मलेरिया रोग में सहायक खान–पान
मरीज को साफ एवं स्वच्छ जल ही देना चाहिए।
मलेरिया के मरीज को साधारण अवस्था में ताजा तुलसी के पत्ते की मिश्रित चाय का सेवन कराना हितकर होता है
खाने में सेव ,अंगूर, पपीता, नींबू ,नारंगी, बेदाना ,साबूदाना ,(चौराई व मेथी का साग )गेहूं की हल्की रोटी दी जा सकती है।
जब बुखार तेज हो उसे समय पसीना उत्पन्न करने वाली चीज जैसे गर्म पानी, सोठ का चूर्ण आदि देना हितकर होगा।
मलेरिया के रोकथाम एवं इलाज
के लिए डॉक्टर क्लोरोक्वीन नामक जो एक साल्ट (formula)अथवा कंपोजीशन है, औषधि का प्रयोग करते हैं।जो बाजार में कई नाम से अलग-अलग कंपनियों द्वारा बनाया जाता है।
प्रायः यह दवा मरीज को अपने मन से नहीं लेना चाहिए क्योंकि एक कुशल चिकित्सक मरीज के लक्षण के अनुसार उसका मात्रा (dose) निर्धारित करता है
क्योंकि मरीजों में बच्चे और प्रेग्नेंट महिलाएं भी हो सकती हैं कभी-कभी यह दवा मलेरिया में प्रभावी नहीं होती है। उस कंडीशन में डॉक्टर अलग दवाइयां दे सकता है।
जैसे- mefloquine , quinine, artesunate ,artemether, Bulaquine, Mepacrine
यह सभी दवाइयों के फार्मूले ही हैं, इसके अलावा कई और दवाएं भी हैं।
जिन सब का प्रयोग मरीज को कदापि अपने मन से नहीं करना चाहिए इन सभी दावों का प्रयोग और उनका मात्र एक कुशल चिकित्सक द्वारा ही निर्धारित की जा सकती हैं।
क्योंकि हर मरीज की अलग-अलग स्थिति और परिस्थिति उम्र और दिक्कतें होते हैं।
मलेरिया से बचाव के उपाय
मलेरिया से बचाव का एकमात्र उपाय मच्छरों के काटने से बचाव करना होता है जिसके लिए अपने रहने के आसपास सफाई का खूब ध्यान रखें तथा समय-समय पर मच्छर मारने वाली औषधि के छिड़काव की व्यवस्था करें
अपने आसपास पानी एकत्रित न होने दें और रात्रि में सोते समय मच्छरदानी का प्रयोग जरूर करें।
Note –यह पोस्ट केवल सामान्य जानकारी के लिए है यदि आपको उपरोक्त में से कोई भी symptoms है तो एक कुशल चिकित्सक के निगरानी में इलाज करायें
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