पीलिया(Jaundice )

jaundice

पीलिया (jaundice ) एक बहुत खतरनाक रोग हो सकता है ,यह पूर्णतः पित्त का रोग है जो नीचे बताया गया है

पीलिया(jaundice )क्या होता है

पीलिया मे ,त्वचा, श्लेष्मा और श्वेतपटल मे पीलापन आ जाता है  यह स्थिति प्लाज्मा में बिलीरुबिन की मात्रा बढ़ने के कारण उत्पन्न होती है। 

इस अवस्था में शरीर के तरल पदार्थ और ऊतक पीले हो जाते हैं। 

जब यकृत (liver ) से निकलने वाली पित्तवाहिनी नली (Bile duct ) के मार्ग में बाधा उत्पन्न होती है या यकृत और पित्ताशय से निकलने वाली पित्तवाहिनी नली के संगम के स्थान पर रुकावट (obstruction ) के कारण मार्ग  बाधित हो जाती है

तो  पित्त पक्वाश्य (डुडेनम)। के जाने की बजाय रक्त में उस स्थान पर वापस मिलने लगता हैं

तब रक्त में लाल रक्त कणिकाओं (R.B.C)  की मात्रा नष्ट होने लगती है और पित्त के बढ़ते प्रभाव से शरीर का रंग पीला हो जाता है,

इस स्थिति को ‘पीलिया’ कहते है कभी-कभी इसके कारण का पता त्वचा के पीलेपन से लग जाता है,  

उदा-हेमोलिटिक पीलिया’ में रोगी की त्वचा का रंग नींबू जैसा होता है

और `कोलेस्टेटिक पीलिया` में त्वचा का रंग हरा होता है!  जबकि थूक और आंसू हमेशा अपने प्राकृतिक रूप में होते हैं।

नोटलेकिन मस्तिष्क इसके प्रभाव से सुरक्षित रहता है, क्योंकि बिलीरुबिन मस्तिष्क में प्रवेश नहीं कर पाता है।

इस स्थिति का पता तभी चलता है जब प्लाज्मा में बिलीरुबिन की मात्रा 2.5 मिली प्रति 100 मिली से अधिक हो  जाती है

पहले यह रक्त में, फिर मूत्र में, फिर श्वेतपटल (कंजंक्टिवा) में और अंत में त्वचा में दिखाई देता है।

इस रोग से पीड़ित रोगी को सब कुछ पीला दिखाई देता है और त्वचा का रंग पीला हो जाता है। 

जब लीवर खराब हो जाता है, पित्त ठीक से अवशोषित नहीं होता है, वही पित्त रक्त के साथ मिलकर रक्त के प्राकृतिक रंग को बदल देता है,  

इसलिए पांडुरोग या पीलिया होता है।    

पीलिया(jaundice ) के कारण

पीलिया के अन्य प्रमुख कारण हैं मलेरिया, रक्तस्राव से अत्यधिक रक्तस्राव, कई प्रकार के बैक्टीरिया या वायरस का संक्रमण

संक्रमित पानी और भोजन का सेवन, रक्त के माध्यम से संक्रमण, वीर्य की अत्यधिक हानि, पाचन की हानि या गड़बड़ी, पौष्टिक भोजन की कमी,

अधिक मिर्च-मसालेदार भोजन , मसालेदार चीजें खाना, अधिक शराब पीना, किसी स्वस्थ व्यक्ति को संक्रमित व्यक्ति को का इंजेक्शन लगाना आदि।

पीलिया(jaundice ) के लक्षण

नोट- पीलिया के लक्षण,अलग –अलग प्रकारों मे लिखा गया हैं

पीलिया  इन हिन्दी ,पीलिया के लक्षण ,कारण ,टेस्ट ,परहेज इन पीलिया
पीलिया का लक्षण

पीलिया(jaundice ) के प्रकार

हेमोलिटिक पीलिया (Haemolytic jaundice )

लाल रक्त कोशिकाओं (R.B.C.) के अत्यधिक विनाश से रक्त में अनकंजूगेटिड बिलीरुबिन की अत्यधिक मात्रा हो जाती है। 

यह अनकंजूगेटिड (unconjugated ) बिलीरुबिन रोगी के मूत्र में उत्सर्जित नहीं होता है और इसमें यकृत की कोई भूमिका नहीं होती है। 

कमला की इस किस्म में लक्षण तीव्र नहीं होते हैं  सीरम में बिलीरुबिन की मात्रा प्रति 100 मिलीलीटर रक्त में 4 मिलीग्राम से कम होती है

और प्लीहा अक्सर बढ़ जाती है  रोगी के पेशाब का रंग भूरा या नारंगी होता है  पेशाब के रंग में कोई बदलाव नहीं होता है,

लेकिन पेशाब रखने पर उसका रंग काला हो जाता है।

हेमोलिटिक पीलिया में रोगी में मुख्य रूप से तीन लक्षण दिखाई देते हैं।

1-Anaemia (खून की कमी)

2-Jaundice (पीलापन )

3-Spleenomegaly (तिल्लीवृद्धि )

नोट –इसमें लिवर फंगक्शन टेस्ट (L F T )सामान्य पाए जाते  हैं  यकृत एंजाइम भी सामान्य / प्राकृत होते हैं। 

रोगी को हल्का पीलिया होता है  केवल प्लाज्मा बिलीरुबिन बदलता है 

रोगी के मल-मूत्र  में यूरो बिलिनज़ोन की मात्रा अधिक होती है  यदि रोगी का मूत्र अधिक देर तक रखा जाए तो उसका रंग गहरा पीला हो जाता है।

अपेप्टिक पीलिया –( Accholuric  jaundice)

यह ऊपर वर्णित पीलिया (हेमोलिटिक पीलिया) के प्रकार के समान है 

लाल रक्त कोशिकाओं की बढ़ी हुई भंगुरता इस प्रकार के पीलिया की एक विशेषता है। 

हेपैटोसेलुलर पीलिया –(Hepatocelluar  Jaundice )

इस प्रकार का पीलिया लीवर की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाने के कारण होता है। 

लीवर खराब होने/क्षतिग्रस्त होने के कई कारण हो सकते हैं 

जैसे-संक्रमण या दवाओं से  इसी कारण इसे ‘विषाक्त पीलिया’ भी कहा जाता है। 

इसके कारण लीवर बिलीरुबिन को पित्त तक नहीं ले जा पाता है, यानी पित्त की थोड़ी मात्रा आंतों तक पहुंचती रहती है,

इसलिए रोगी के मूत्र का रंग बहुत अधिक मैला नहीं होता है  भले ही पीलिया बहुत स्पष्ट न हो, फिर भी यह संभव है कि रोगी का लीवर अधिक क्षतिग्रस्त हो सकता है। 

इस प्रकार के पीलिया में खुजली भी कम होती है, लेकिन रोग का कारण तीव्र भी हो सकता है। 

इस प्रकार के पीलिया में रोगी के रक्त में संयुग्मित और असंयुग्मित बिलीरुबिन की मात्रा बढ़ जाती है। 

इस प्रकार के पीलिया के मुख्य कारण ड्रग्स, शराब, केमिकल्स, वायरल हैपेटाइटिस, सिरोसिस, गर्भावस्था

और  ट्यूमर, गिल्बर्ट सिंड्रोम, क्रोनिक हेपेटाइटिस, ट्यूबरकुलोसिस, सेप्टीसीमिया, सिफलिस, बच्चे को जल्द से जल्द पैदा होने पर  

नोट- याद रखें कि पीलिया इस में बहुत कम से लेकर बहुत अधिक तक हो सकता है

अवरुद्ध पथ पीलिया –(Obstructive jaundice )

इस प्रकार का पीलिया पित्त प्रवाह में रुकावट के कारण होता है 

यह रुकावट हेपेटोसाइट्स से लेकर ग्रहणी तक कहीं भी हो सकती है 

पित्त की पथरी सामान्य पित्त नली में रुकावट या उसमें किसी प्रकार की वृद्धि के कारण पित्त ग्रहणी तक नहीं पहुँच पाता

जिसके कारण यह पीलिया उत्पन्न हो जाता है। 

इसके अन्य कारण भी हैं-इसमें बिलीरुबिन आँत तक नहीं पहुँच पाता है  इसमें शुरुआत में पीलिया कम होता है

लेकिन धीरे-धीरे यह बढ़ जाता है और रुकावट दूर न होने पर यह बहुत ज्यादा हो जाता है 

इस प्रकार के पीलिया के मुख्य कारण नीचे लिखे गए हैं:

बड़ी पित्त नली में रुकावट,

सामान्य पित्त नली में पित्त पथरी द्वारा रुकावट,

पित्त नली का कार्सिनोमा,

पित्त नली का संकुचित होना,

अग्न्याशय की कार्सिनोमा,

स्क्लेरोज़िंग हैजांगाइटिस। 

छोटी पित्त नली में रुकावट

शराब एवं दवाएं

यकृत कोशिकाओं में संक्रमण

जिगर की सर्जरी के बाद

सिरोसिस

वायरल हैपेटाइटिस

अधिक जीवाणु संक्रमण के बाद 

प्रमुख लक्षण – इस पीलिया में त्वचा का रंग हरापन होता है , भूख न लगना , खुजली पूरे शरीर में दर्दनाक हो सकती है

मुंह का स्वाद नमकीन और कड़वा होता है रोगी का मल बेज रंग या हल्के पीले-पीले रंग में आता है

कभी-कभी पेट के ऊपरी हिस्से में तेज दर्द होने लगता है।

पेट की जांच करने पर गॉल ब्लैडर फूला हुआ पाया जा सकता है

संक्रमण के कारण रोगी को सर्दी या कंपकंपी के साथ बुखार हो सकता है

लीवर अपने प्राकृतिक आकार से बड़ा हो जाता है, रोगी का शारीरिक वजन कम होना, कमजोरी

कैल्शियम और विटामिन डी की कमी के कारण रोगी के जोड़ों और हड्डियों में दर्द होता है

रोगी में विटामिन (के) की कमी के कारण रक्तस्राव की प्रवृत्ति अधिक हो जाती है

पित्त में गड़बड़ी के कारण वसा का पाचन ठीक से नहीं हो पाता है

लंबे समय तक पीलिया रहने पर लीवर की कोशिकाएं अधिक क्षतिग्रस्त हो जाती हैं,

जिससे लीवर का मेटाबोलिक फंक्शन गड़बड़ा जाता है और मरीज को हेपेटोसेलुलर फेल्योर हो जाता है।

फिजियोलनजिकल पीलिया ( Physiological jaundice)

इस प्रकार का पीलिया नवजात शिशुओं में जन्म के कुछ दिनों के भीतर ही हो जाता है। 

इसका मुख्य कारण शुरुआत में लाल रक्त कोशिकाओं के विखंडन की अधिक संख्या है (याद रखें कि यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है)

इसलिए घबराने की जरूरत नहीं है, बल्कि बच्चे का पूरा ख्याल रखना जरूरी है, क्योंकि कई बार यह पीलिया भी बहुत ज्यादा बढ़ जाता है

और बच्चा मां का  दूध पिना बंद कर देता है और वह चिड़चिड़ा  हो जाता है और  रोता  रहता  है

ऐसी स्थिति में बच्चे को एक सुसज्जित अस्पताल या बच्चों के नर्सिंग होम में भर्ती करना आवश्यक होता हैं  

पीलिया (jaundice ) रोग की पहचान और जांच

पित्त, वसा, कीड़े आदि के लिए एक मल परीक्षण किया जाना चाहिए। 

पित्त की उपस्थिति के लिए रोगी के मूत्र का परीक्षण किया जाना चाहिए। 

विशेष-परीक्षण अवधि के दौरान नमूना लेते समय इस बात का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है कि कहीं मूत्र/मल में मिश्रित तो नहीं है। 

पेट का एक्स-रे, छाती का एक्स-रे, बेरियम मील,

लिवर बायोप्सी , एंडोस्कोपी ,कोंपलित ब्लड काउन्ट ,उदर भेदन आदि हो सकता हैं ,अल्ट्रासोनोग्राफी सम्पूर्ण पेट की सीरम बिलिरुबिन ,सीरम एमाइलेज, सीरम कोलेस्ट्रॉल, LFT , HB ,TLC ,DLC ,ESR , SGOT , SGPT

पीलिया(jaundice ) रोग मे लाभदायक भोजन

हल्का, सुपाच्य, ताजा खाना जैसे चावल, दलिया, खिचड़ी, बाजरा, जौ, बिना वी. साबूदाना खीर, अरारोट, जौ, मूंग, मसूर, पतली दाल

कच्चा नारियल पानी, मूली के पत्तों का रस,  ताजा छाछ, बिना क्रीम वाली क्रीमनिकाला हुआ दूध, शहद, गन्ना, गन्ने का रस (पवित्रता का ध्यान रखते हुए) का सेवन करें। 

बुखार होने पर मीठे फलों के रस में ग्लूकोज मिलाकर पीएं 

हरी सब्जियों में कच्ची मूली, लौकी, करेला, प्याज, पुदीना, फूलगोभी, पालक, धनिया, मेथी, परवल, गाजर, लहसुन, पत्ता गोभी खाएं। 

फलों में पपीता, आंवला, चीकू, खजूर, अंगूर, मीठा, अनार, मौसमी, सेब, टमाटर, संतरा, नींबू खाएं। 

हमेशा उबला, छना हुआ, क्लोरीन-साफ पानी ही पिएं। 

सुबह उठकर एक गिलास गुनगुने पानी में एक नींबू निचोड़ कर पिएं।

पीलिया(jaundice ) मे क्या न खाएं  

भारी, गरिस्ट , घी-तेल में तला हुआ, मिर्च-मसालेदार, ज्यादा नमकीन, खट्टा अचार, सिरके से बनी चीजें खाने में नहीं खानी चाहिए। 

दूध, घी, तेल, मिठाई, बेसन की वस्तु, मैदे के व्यंजन, मांस, मछली का सेवन न करें।  

कचालू , अरवी, राई , हींग, गुड़, चना, उड़द की दाल, चीनी आदि से भी बचना चाहिए।

चाय, कॉफी, तंबाकू, गुटखा, शराब का सेवन न करें।  बासी भोजन और अशुद्ध जल का सेवन न करें। 

पीलिया(jaundice ) रोग से बचाव के उपाय

भोजन को किसी जाली या ढक्कन से ढके साफ बर्तन में रखें।  जब तक रोग दूर न हो जाए तब तक पूरा आराम करें। 

अपने हाथों के नाखून समय-समय पर काटते रहें।  शौचालय से आने के बाद और खाने से पहले हाथों को साबुन और पानी से अच्छी तरह धोएं। 

रोगी के कपड़े, निजी चीजें, बर्तन उबले हुए पानी से अच्छी तरह धोएं  व्यक्तिगत स्वच्छता पर पूरा ध्यान दें। 

किसी भी प्रकार का इंजेक्शन देते समय केवल डिस्पोजेबल सीरिंज और सुई का ही प्रयोग करें। घर में पैरों और हाथों पर थोड़ा टहलें, इससे लीवर को अच्छी एक्सरसाइज मिलेगी। 

पीलिया(jaundice ) मे क्या न करें  

केवल झाड़ –फूंक पर निर्भर न रहें। पीलिया जानलेवा साबित हो सकता है  बाजार में ठेलों पर मिलने वाले खुले खाद्य पदार्थों का सेवन न करें।

सब्जियों और फलों को साफ पानी से धोए बिना न खाएं।  कब्ज की शिकायत न आने दें।

रोगी के कपड़े, व्यक्तिगत सामान, बर्तन आदि का प्रयोग न करें। किसी महिला के साथ यौन संबंध बनाने की कोशिश न करें

शरीरिक मेहनत मत करे, आराम करे !

नोट -उम्मीद करता हु की आप लोग इस पोस्ट को जरूर लाइक करेंगे ,साथ ही साथ मेरे I B S नाम के पोस्ट को भी पढ़िएगा मै लिंक जोड़ दे रहा हु

7 thoughts on “पीलिया(Jaundice )

  1. आपकी टिप्पणी की वजह से हमें इस रोग के बारे में अच्छे से जानकारी मिली। बहुत अच्छा लग रहा है थैंक यू yesi post डालते रहिए

  2. आपकी टिप्पणी की वजह से हमें इस रोग के बारे में अच्छे से जानकारी मिली। बहुत अच्छा लग रहा है yesi post डालते रहिए
    Thank you sir.

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